उत्कर्ष सिन्हा
लोकसभा चुनावों की आहाट जैसे-जैसे तेज हो रही है वैसे-वैसे सूबे के सियासी दलों के रणनीतिकार अपनी गुणा गणित बैठाने में जुट गए हैं. सबसे ज्यादा सीटों वाला यूपी हमेशा से सभी के लिए महत्वपूर्ण रहा है.
पहले 2014 और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की प्रचंड जीत की वजह भी यही सूबा बना था. और अब 2024 के चुनावों में जब भाजपा कुछ राज्यों में कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है तब एक बार फिर उसकी उम्मीद भरी निगाहें यूपी पर टिकी हैं.
2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी प्रचंड हिंदुत्व और विकास के सुनहरे सपनों से बने रथ पर भले ही सवारी करते दिखे मगर उस सफलता के पीछे करीने से बुना हुआ जातीय समीकरणों का जाल भी था.
इस समीकरण का असर 2017 के विधान सभा चुनावो में भी दिखाई दिया और सूबे में भाजपा की सत्ता में वापसी हुयी. इस मुकाबले में भाजपा ने सवर्णों के साथ-साथ ओबीसी वोटरों में भी जबरदस्त सेंध लगा दी थी और अखिलेश यादव को बड़ा झटका दिया था.
लेकिन 2022 के विधान सभा चुनावो में भाजपा अपनी सफलता के पुराने आंकड़े नहीं दोहरा सकी जिसके पीछे एक बड़ा कारण यही ओबीसी वोटर बने. यूपी में योगी दुबारा सीएम तो बन गए लेकिन सीटें कम हो गयी. यही हाल पिछले लोकसभा चुनावों में भी रहा. इन नतीजो से सबक लेते हुए इस बार भाजपा के खेमे में गंभीर चिंतन हो रहा है.
सवर्ण मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर चुकी भाजपा ने अपने मिशन 24 के लिए टारगेट 80 नाम का प्लान बनाया है. उसके बड़े नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया है कि इस बार हम यूपी की सभी 80 सीटों को जीतेंगे.
इस टारगेट 80 को अमली जामा पहनाने के लिए पार्टी की निगाहें एक बार फिर ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर है. यूपी की योगी सरकार ने यूपी में सरकारी नौकरियों में ओबीसी कोटे का डाटा जुटाने का फैसला किया है. बताया जा रहा है कि सरकार पिछले 10 सालों में सरकारी नौकरियों में कितना प्रतिनिधित्व ओबीसी का है इसका आकलन करने के लिए सरकार ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों को पात्र भेजा है.
यह गिनती सिर्फ एक कैटेगरी में नहीं होगी बल्कि ओबीसी कही जाने वाली 79 उपजातियों के हिसाब से चार्ट तैयार किया जायेगा जिसमें समूह ‘क’ से लेकर समूह ‘घ’ तक कुल पदों में नियुक्त कार्मिकों का ब्यौरा होगा.
सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाली पार्टियों ने बीते दिनों से जातिवार जनगणना करने की मुहीम चला रखी है और उससे भाजपा थोड़ी असहज भी है. यूपी में अखिलेश यादव ने बीते विधान सभा चुनावों में अपने वोटों का प्रतिशत भी अच्छा खासा बढ़ाया है यानी वे अपने मूल वोटर ओबीसी और मुस्लिम को वापस लाने में कामयाब रहे हैं. ऐसे में भाजपा की चिंता और भी बढ़ गयी है.
यूपी में ओबीसी सबसे बड़ा वोटर ब्लाक है जिसमें कुर्मी और यादव महत्वपूर्ण हैं. आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में दिनेश लाल यादव निरहुआ को जीता कर भाजपा यादव वोटरों को सन्देश देना चाहती थी और अब प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी किसी ओबीसी चेहरे के जरिये वह अपने इस अभियान को धार देगी.