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गांव-देहात में गिनती के बचे उम्रदराज वृक्षों को देखकर मुझे हमेशा यह ख्याल आता है कि....

गांव-देहात में गिनती के बचे उम्रदराज वृक्षों को देखकर मुझे हमेशा यह ख्याल आता है कि यदि ये वृक्ष हमें अपनी कहानी सुना पाते, हम इनकी भाषा समझ पाते तो हमारे पास कितनी कहानियां होतीं, कितने किस्से होते! ऐसे किस्से जो कभी कहे नहीं गए, जो सुने नहीं गए, जो कहीं दर्ज नहीं हुए।

बीते पचास साठ वर्षों में न जाने कितने राहगीरों ने इनकी छांव में गुड़-सत्तू खाकर दोपहर बिताई होगी। अनगिनत राहगीरों ने आसरा लिया होगा और इन वृक्षों को सुनाया होगा दुनियां का सबसे शानदार यात्रा वृतांत।

चिलचिलाती गर्मी में कहारों ने यहीं रखी होंगी डोलियां जिसके भीतर से दुल्हन ने धीरे से पर्दा हटाकर देखा होगा इस विशाल वृक्ष को, दूल्हे ने उसे मद्धम आवाज में इस पेड़ पर रहने वाले बरम बाबा की कहानी सुनाई होगी और आश्चर्य से फैलती अपनी दुल्हन की आंखों के समंदर में डूब गया होगा।

इस पेड़ के पास होंगे रहजनों के अनगिनत दुर्दांत किस्से, मूकदर्शक की हैसियत से शामिल रहा होगा यह उनकी योजनाओं में और इसने अपने नीचे महीनों दबाए रखे होंगे बेशकीमती माल-असबाब।

इसकी टहनियों पर होंगे अनेकानेक पक्षी परिवारों की घर-गृहस्ती के निशान, जन्म के सोहर और मृत्यु का विलाप। जब जब शिकारियों के बाण से काल कवलित हुआ होगा कोई परिंदा तब तब आंसुओं की जगह पर इसने गिराई होंगी अपनी पत्तियां।

इसकी स्मृतियों में दर्ज होगा बाढ़ बारिश सूखा तूफान का संगीत जिन्हें देर रात यह गाता होगा हवाओं के साथ।

जुगनुओं ने इनकी पत्तियों का बोसा लिया होगा और अपनी रौशनी से नहलाकर उनका शुक्रिया अदा किया होगा।

बच्चों ने देर रात तक सितारों की झालर में लिपटे इन पेड़ों को देखते हुए परियों की दुनियां में वक़्त बिताया होगा और किसी दिन उस पर रहने वाली बुढ़िया माई से सामना न हो, कि प्रार्थना की होगी।

जवानी की दहलीज पर कदम रखते किसी युवक/युवती ने जब भी इसकी टहनियों पर फंदा लगाया होगा तब यह पेड़ ज़ार ज़ार रोया होगा.. अपने होने पर, कुछ न कर पाने की असमर्थता पर।

अपने आखिरी दिनों को गिनते ये बुजुर्ग पेड़ मुझे बाबा की याद दिलाते हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे वो अपने आखिरी वक्त तक नातियों पर प्रेम लुटाते रहे, उनके भले की कामना करते रहे और अपने अंश के एक एक कण को अपनों के लिए न्यौछावर करते रहे।

ये केवल पेड़ नहीं हैं, ये हमारे पुरखों के आशीर्वाद हैं जिसकी छांव में बैठने पर हमें उनके न होने का एहसास कुछ कम होता है।

(यह स्टोरी स्वतंत्र लेखक एकलव्य राय के फेसबुक वाल से ली गयी है |)

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