बिलकिस बानो के गुनहगारों को रिहा करना गुजरात की भाजपा सरकार को भारी पड़ता नज़र आ रहा है। विपक्षी दल जहां इस मुद्दे को लेकर भाजपा को घेर रहे हैं वहीं अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। ये नोटिस केंद्र की मोदी को भी जारी किया गया है। जिसमें दोनों ही सरकारों से दोषियों की रिहाई पर जवाब तलब किया गया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के खिलाफ एक याचिका दायर की गई है। याचिका सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली समेत 4 लोगों ने दायर की है। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमणा की पीठ के सामने वकील कपिल सिब्बल ने मामले में बहस की।
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा दंगों के दौरान 14 लोगों की हत्या और महिलाओं के सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों को सज़ा में छूट दिये जाने पर गुजरात सरकार और केंद्र को नोटिस जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वो मामले में देखेगा कि गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं या नहीं? अब मामले में अगली सुनवाई दो हफ्ते के बाद की जाएगी।
इससे पहले गुजरात सरकार ने कहा था कि बिलकिस बानो मामले में उम्रकैद की सज़ा पाने वाले सभी 11 दोषियों को गुजरात में प्रचलित माफी नीति के तहत रिहा किया गया है। गुजरात सरकार के गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी 16 अगस्त को दी थी। उन्होंने मामले में केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के उल्लंघन के दावों को खारिज कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, 3 मार्च 2002 को गुजरात दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था। बिलकिस उस समय पांच महीने की गर्भवती थीं।
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हमले के दौरान उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी गई थी। जिसमें एक 3 साल की बच्ची भी शामिल थी।