अचिन्त्य
देश आज़ादी के 75 वें साल का जश्न मना रहा है। तमाम राजनैतिक दलों से लेकर सामाजिक संस्थान तक अपने-अपने तरीके से इसमें अपनी सहभागिता दर्ज करा रहे हैं। इनके अलावा व्यवसायिक, औद्योगिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरीखे लगभग हर क्षेत्र के सभी संगठन तरह-तरह से अपनी खुशी का इज़हार कर रहे हैं। 75 साल… कितना लम्बा समय होता है ना। इस लंबे समय में कितनी बड़ी यात्रा तय की है हमने। पीछे मुड़ो, तो पता चलता है। पर कुछ लोगों को लगता है, यह समय पलक झपकते गुज़र गया है। कितना मूर्खतापूर्ण है यह सोचना। कितनी कुंठा से लबालब। कह पाना भी सम्भव नहीं। पर अफ़सोस! देश की सत्ता संभालने वाले ही ऐसा सोचते-कहते हैं।भाजपा अक्सर कहती है, 70 सालों में इस देश को कुछ नहीं मिला।
जुमलेबाज़ी में मगन वो यह भी भूल जाती है कि ’70 साल’ में उसके नेता का भी कार्यकाल शामिल है। बहरहाल! इससे उन्हें क्या? उनके मुँह जो बात आई, सो कह दी गई। पर दुःख और क्रोध तो भीतर तब पनपता है, जब वो ‘कॉंग्रेस मुक्त भारत’ का ढोल पीटने लगती है। काँग्रेस… भारत के आज का विपक्ष और हमेशा-हमेशा का गौरव। जिसके बग़ैर न तो स्वतंत्रता संग्राम का अध्याय पूरा होगा। और ना ही उसके बाद का कालखंड। जो भारतीय इतिहास का पूरक है। साथ ही उस इतिहास के गौरव का सूचक भी।
यह देश अपने इतिहास को संजोना बखूबी जानता है। ऐसा करने के लिये इसे किसी सत्ता के सहारे की ज़रूरत नहीं। ना ही जरूरत है किसी वक्ता-प्रवक्ता की जो चीख-चिल्लाकर सच-झूठ के बीच का कोई फ़र्क़ या तर्क दे। क्योंकि समय का साक्ष्य हमेशा इसे स्वीकार्य रहा है। ख़ैर! यह तो अकाट्य सत्य है कि भारत कभी कांग्रेस मुक्त नहीं हो सकता। भारत की संस्कृति-सभ्यता कांग्रेस की आत्मा में रचा-बसा है। जिसे कभी अलग करके नहीं देखा जा सकता।यानी कहा जा सकता है कि भारत ही कांग्रेस की आत्मा है। वैसे भी, कैसी मुक्ति? और किससे? लोकतंत्र के विपक्ष से। या उस दल विशेष से जो लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरवीकार रहा है। और प्रहरी भी।
उसी लोकतंत्र का पैरवीकार जिसके बाबत महाकवि कालिदास लिखते हैं, “अविश्रमोयम लोकतंत्रस्य सर्वाधिकारः”। जिसकी कल्पना सँजोये महात्मा गाँधी कहते हैं, “True democracy is not inconsistent with a few persons representing the spirit, the hope and the aspirations of those whom they claim to represent.”
और उसी लोकतंत्र का प्रहरी जिसके सहारे भाजपा भी आज सत्ता की कमान थामे हुए है। तथा हर रोज़ जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था के दमन का कुचक्र रचती प्रतीत हो रही है। बहरहाल, यह दमन कर सकना मुमकिन नहीं। क्योंकि भारत दमनात्मक क्रियाओं के विरुद्ध इतना मजबूत स्वर है, जो दमनकारियों का ही दमन कर दे। सो निःसन्देह इनके सारे प्रयास निष्फल ही सिद्ध होने वाले हैं। अच्छा! सच कहूं तो संघी-भाजपाई कभी-कभी मूढ़ लगते हैं। अब ये हैं ही या नाटक करते हैं। यह तो ईश्वर जाने। पर इनकी दलीलें सुनेंगे तो आप सब भी इनकी मूढ़ता से इंकार नहीं कर पाएंगे। सुनियेगा, इनके बड़े-बड़े नेता अक्सर कहते हैं…’इस देश में कांग्रेस के शासन काल में कुछ हुआ ही नहीं’। अब क्या यह बयान समझदारी या विद्वता का प्रतीक है? क्या यह हास्यास्पद नहीं लगता? इतना ही नहीं ये तो कांग्रेस की कार्यावधि से अपने कार्यावधि की तुलना कर भी देते हैं। अब यह तुलनात्मकता भला किसे नहीं हंसाएगी?
बड़ी सीधे-सरल उदाहरण से समझने योग्य बात है कि किसी 75 साल के आदमी की उम्र से 66-67 वर्ष निकाल दो तो क्या बचेगा? अथवा क्या किसी 70 वर्षीय व्यक्ति के कर्म-कमाई की तुलना 5 वर्षीय शिशु से हो सकती है? दोनों ही अवस्थाओं के उत्तर स्वतः इनके प्रश्नों का जवाब दे देंगे। पर ये समझें तब तो। अब इस पर भला किसे हंसी नहीं आएगी।
इस व्यंग्यात्मक हंसी के नेपथ्य में पीड़ा और क्रोध की मिश्रित भावनाएं तब उमड़ पड़ती है। जब ये वही ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का राग अलाप लेते हैं। जो बात ऊपर कही गयी है। भाजपाई जब भी ये यह बात करते हैं। एक-दो सवाल अन्तस में बोल पड़ते हैं कि ‘क्या कांग्रेस ने अपने पूरे शासनकाल में किसी भी दल से भारत को मुक्त कराने की बात की है?’ ‘क्या अगर सत्ता विपक्ष को समाप्त करने का षड्यंत्र करे तो यह लोकतंत्र के साथ घात नहीं है?’ है ना। फिर क्यों न हो पीड़ा? क्यों न आये क्रोध?
ख़ैर! ये करते रहें षड्यंत्र। कोई फ़र्क़ नहीं। कांग्रेस ने इस देश में विकास के नवीनतम मापदंड स्थापित करते जो चिन्ह बनाये हैं। उन्हें समाप्त कर सकना किसी के सामर्थ्य के परे है। और जब तक वे चिन्ह ज़िंदा रहेंगे। काँग्रेस की अनुगूंज सुनाई पड़ती रहेगी। स्मरण करें संघी! ‘संविधान’ सभा में बहुतायत सदस्य किसके थे? इस ‘समावेशी प्रगतिशील संविधान’ को गढ़ने का श्रेय किसे जाता है? और यह भी कि उस संविधान की प्रस्तावना ही पण्डित नेहरू ने लिखी थी। वही नेहरू जिनके सदृश ना कोई था, ना है, ना होगा। ‘550 से अधिक देशी रियासतों का एकीकरण’ करके भारत को गणराज्य बनाने की परिकल्पना को यथार्थ भी काँग्रेस ने ही किया। जिन ‘आम चुनावों’ के ज़रिये ये सत्ता में आ सके। उस लोकतांत्रिक महोत्सव का आगाज़ भी कांग्रेस की ही देन में शामिल है। और वो अपनी ‘पंचवर्षीय योजना’ भी। ‘नवरत्न और महारत्न कम्पनियों’ को भी अस्तित्व में लाया काँग्रेस ने। ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ ‘भूमि सुधार’ ‘छुआछूत’ जैसी कुप्रथा का उन्मूलन ‘महिलाओं के लिये बुनियादी अधिकार’ सहित किसानों के लिये ‘नहरों एवं बांधों का निर्माण’ इन सभी की देनदारी भी तो काँग्रेस की ही है।
इस देश की चिकित्सा व्यवस्था सुदृढ़ हो इसलिये ‘AIIMS’,औद्योगिकी और तकनीकी क्षेत्र में विकास के लिये ‘IITs’, प्रबंधन के नए तरीकों का इजात करने के लिए ‘IIMs’, साहित्य-कला-संस्कृति के ऊर्ध्वाधर प्रगति के लिये ‘NSD, साहित्य अकादमी, उर्दू अकादमी, ज्ञानपीठ’ और परमाणु विज्ञान के अध्ययन तथा प्रयोग हेतु 1948 में ही ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ की स्थापना भी काँग्रेस ने ही की। दरअसल कांग्रेस भारत की पुण्यभूमि पर लगा वह शिलापट्ट है। जिसके शब्दों को धूमिल कर सकने की क्षमता किसी में भी नहीं। इस पार्टी ने ‘गोवा विजय’ करके ‘पैरामिलिट्री फोर्सेज़’ तो बनाई ही। खेलों के क्षेत्र में प्रगति के लिये ‘एशियाई खेलों का गठन’ भी किया। यह सारे विकास के नमूने तो अभी महज़ नेहरू जी के हिस्से के है। अरे हाँ! ‘योजना आयोग’। एक महत्त्वपूर्ण नमूना यह भी तो है पण्डित जी के हिस्से में। शास्त्री जी के शासनकाल में ‘पाकिस्तान को जो धूल भारत ने चटाई’ वो दुनिया आज तलक न भूली। और ‘हरित क्रांति’ में निहित स्वाभिमान भी कांग्रेसी ही है।
‘सिक्किम विलय’,’दुग्ध क्रांति’,जिन बैंकों का ये निष्ठुर सत्ताई निजीकरण करते जा रहे उन ‘बैंकों का राष्ट्रीय करण’,परमाणु विज्ञान और चिकित्सा व्यवस्था के विकास की राह पर एक और कदम चलते हुए ‘परमाणु परीक्षण’ और ‘PGIs’, गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक तथा उच्चतर शिक्षा हेतु ‘केंद्रीय विद्यालयों’ की स्थापना तो कॉंग्रेस ने की ही। साथ ही साथ हमेशा बन्दरघुड़की दिखाते रहने वाले ‘पाकिस्तान के दो टुकड़े’ भी 1971 में कांग्रेस ने ही किया।
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एक आज की सत्ता है, जो इंसानों के बीच नफ़रती बीज बोते नहीं थकती। और एक काँग्रेस की सत्ता का समय था। जहाँ इंसानों के साथ पशु सम्पदा का भी कितना ख़्याल रखा जाता। तभी तो इंदिरा जी की सरकार में तमाम ‘वन्य जीव विधियाँ’ बनाईं गईं। इसके साथ ही दिन-ब-दिन बढ़ते प्रदूषण से चिंतित काँग्रेस सरकार ने ही ‘प्रदूषण नियंत्रक विधियाँ’ भी बनाई। साथ ही खेलों की दिशा में एक और कदम चलते प्रथम वैश्विक खेलों की मेज़बानी हिंदुस्तान ने पहली मर्तबा कांग्रेस के ही शासनकाल में किया 1982 वाले ‘एशियाई खेल’ के तौर पर।इंदिरा के शासनकाल में विज्ञान के कदम इतनी तेज़ी से बढ़े कि थामे न थमे। ‘प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण’ से लेकर ‘प्रथम अंतरिक्ष अभियान’ तक सब उसी कार्यकाल की उपलब्धियों में शुमार है। इतना ही नहीं बंधुआ मज़दूरों के विरुद्ध जो कार्यवाही ‘बंधुआ मजदूर अधिनियम’ ने की। वह आज भी प्रशंसनीय है।
अपनी विरासत को संवारने के लिये ‘पुरातत्व विभाग के गठन’ से लेकर निम्न स्तरीय लोगों का ख़्याल रखने के लिये ‘आंगनबाड़ी’ और ‘मिड डे मिल’ जैसी योजना तक भी काँग्रेस के नाम पर ही दर्ज है।आधुनिकता के नए पैमाने तय करती दुनिया से भारत के कदम भी कांग्रेस ने ही मिलाए। ‘कम्प्यूटर क्रांति’,’दूरसंचार क्रांति’,दूरदर्शन’ ये सारे राजीव के वे पहल हैं, जो युगीन भारत की नींव में जड़े हैं। राजीव की निगाहों यहीं तक नहीं थी। बल्कि उस सरकार प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा को अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिये एक और पहल की तथा ‘नवोदय विद्यालयों’ की स्थापना की। और दूरस्थ उच्चतर शिक्षा के लिये ‘IGNOU’ की सोच भी कांग्रेस की ही है।
आधुनिक होती दुनिया से कदम मिलाती कांग्रेस सरकार ने भारतीय संस्कृति को भी बखूबी संजोया। और कुशल निर्देशकों के निर्देशन में ‘रामायण महाभारत सरीखे धारावाहिकों का निर्माण’ कराया। जिससे राम और कृष्ण की गाथाएं घर-घर तक सरलतापूर्वक पहुंच जाए। इसी कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में जहां एक ओर भारत ने ‘नाथूला में चीन को हराया’। तो दूसरी ओर गरीब बेघर ग्रामीणों के लिये ‘इंदिरा आवास योजना’ की भी शुरुआत की। और ‘पंचायती राज’ की सारगर्भित व्यवस्था लागू की। जिन युवाओं को कथित राष्ट्रवाद के झांसे में लेकर आज भाजपा अपना वोट बैंक साध रही है। उन युवाओं के लिये ‘न्यूनतम मतदान आयु’ में संशोधन के साथ ‘न्यूनतम विवाह आयु’ भी कांग्रेस ने ही निर्धारित किये।
अब बताइये इन संघियों-भपाईयों की स्मरण शक्ति कितनी कमजोर है। और हाँ! दृष्टि भी। क्योंकि उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता। तभी तो ये पूछते हैं, काँग्रेस ने क्या किया। कहने दीजिये। कहने में क्या ही लगना है। लेकिन जब उनकी दृष्टि वापस लौटेगी तो उन्हें दिखेगा कि ‘पोखरण परमाणु परीक्षण की पूरी तैयारी’ भी काँग्रेस के ही प्रधानमंत्री राव ने की। काँग्रेस सरकार ने ही ‘आर्थिक सुधार’ के क्षेत्र में सार्थक पहल की। ‘नेशनल स्टॉक एक्सचेंज’ की शुरुआत की। यह सब कुछ ये संघी-भाजपाई विस्मृत कर चुके हैं।
इन्हें तनिक भी इन सारी बातों का ध्यान-भान नहीं। ये अक्सर इस देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री के प्रति तमाम कुविशेषणों का प्रयोग करते हैं। ऐसा करते ये यह भी भूल जाते हैं कि उस महान व्यक्तित्व की विद्वता का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है। पर क्यों बाज आएं? इन्हें भी तो अपनी उद्दंडता, अशिष्टता के झण्डे गाड़ने हैं। इन्हें याद करना चाहिये ‘मनरेगा’ जैसी महत्वाकांक्षी योजना को। साथ ही ‘शिक्षा के अधिकार में हुए संशोधन’,’सूचना का अधिकार’ और ‘भूमि अधिग्रहण कानून में हुए आमूलचूल बदलाव’ को। पर ये सब कुछ अपने दिमाग से मिटा चुके हैं। और चाहते हैं कि आवाम भी इन बातों को भूल जाये। पर किसी के चाहने भर से भला क्या होने वाला है?
ये कांग्रेस की ही सरकार थी, जिसमें भारत परमाणु विज्ञान से जुड़े मुद्दों के लिये एक कदम और चलकर भारत ने’परमाणु सन्धि’ की। कांग्रेस, भाजपा की तरह पूंजीपतियों की ज़ागीर कभी नहीं रही। हर भूखे पेट को भरने के लिये इसने सभी को ‘भोजन का अधिकार’ का दिया। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिये ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ की पटकथा लिखी। ‘आदिवासियों के संरक्षण हेतु विधियाँ’,’महिला सशक्तिकरण में आवश्यक पहल’,’आशा बहु योजना की शुरुआत’,’किसानों को कर्ज़ से राहत’,आपदाओं के निबटान हेतु ‘आपदा प्रबंधन’,’हेपेटाइटिस-बी, टीबी, कुष्ठ रोग का मुफ़्त टीकाकरण’ और सभी देशवासियों के हृदय में सम-भाव लाने के लिये ‘समानता का अधिकार’ यह सब कुछ काँग्रेस की जनहितकारी नीतियों की उपज है। बेटियों की चिंता करते ‘सम्पत्ति में समानता का अधिकार’और ‘कस्तूरबा गाँधी आवासीय कन्या विद्यालय’ की शुरुआत भी कांग्रेस के नाम ही दर्ज है।
वो कांग्रेस ही है, जो देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा के प्रति सदैव सजग रही। और अपनी सरकार इस निमित्त जरूरी कदम उठाते हुए ‘NIA’,’RAW’,’IB’ और ‘ICG’ का गठन किया। उच्चतर शिक्षा पर पैनी नज़र बनाये रखने के लिये ‘UGC’ बनाई। इस देश को ‘प्रथम महिला राष्ट्रपति’ देने वाली पार्टी कांग्रेस। ‘प्रथम अल्पसंख्यक राष्ट्रपति’ देने वाली पार्टी कांग्रेस। ‘प्रथम दलित राष्ट्रपति’ देने वाली पार्टी कांग्रेस। ‘प्रथम महिला प्रधानमंत्री’ देने वाली पार्टी कांग्रेस। ‘प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष’ देने वाली पार्टी कांग्रेस।
कांग्रेस की देनदारी इतनी है कि इतने सीमित शब्दों में समेट पाना कदाचित सम्भव नहीं। अपने आप में यह एक इतिहास की पुस्तक है। अब बताइये, इतनी उपलब्धियां इस देश के नाम लिखने वाली कांग्रेस को मिटाने की बात गले उतरेगी भला। इस पर कौन नहीं हँसना चाहेगा। लेकिन हंसी की ओट में पनप रहा दुःख तो इस बात का होता है कि वर्तमान सत्ता इतिहास का माखौल बना रही है। नया इतिहास गढ़ने का कुचक्र रच रही है। जो यथार्थ से बिल्कुल परे हो। पर कोई बात नहीं। ऐसा नहीं होगा।
चूंकि यह सत्ता अपने मद में इतनी चूर है कि क्या ही कहें। इसके अहंकार की कोई सीमा नहीं। किंतु इसका भी अहंकार टूटेगा। राम नाम की चादर ओढ़कर बैठा रावण एक न एक दिन बेपर्दा जरूर होगा। इस बात का यक़ीन है हिंदुस्तान की आत्मा को। हमें यक़ीन है कि यह सब समय देख रहा होगा। और सब कुछ दर्ज़ कर रहा होगा अपनी किताब में। कि कैसे हम लड़ रहे हैं इन शोषकों और पूंजीवादी राजनीतिकारों के ख़िलाफ़। कैसे लड़ रहे हैं हम अपना इतिहास बचाने के लिये। कैसे लड़ रहे हैं भारतीय संस्कृति के चेतना लौटाने के लिए। समय सब लिख रहा होगा अपनी किताब में। और लिखेगा भी कि…
इन अहंकारियों के अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध
हम लड़ रहे हैं! हम लड़ेंगे!
(अचिन्त्य स्वतंत्र लेखक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)