केरल में कोझीकोड के सेशन कोर्ट ने पिछले हफ्ते यौन उत्पीड़न के एक मामले में प्रभावित महिला को ‘यौन उत्तेजक’ कपड़े पहनने की बात कहते हुए अभियुक्त को ज़मानत दे दी। अदालत के इस फै़सले के बाद क़ानूनी बिरादरी में काफ़ी नाराज़गी देखी जा रही है। कोझीकोड सेशन कोर्ट के जज एस कृष्ण कुमार का यह फै़सला 12 अगस्त को आया, जिसके दस्तावेज़ बुधवार को सार्वजनिक किए गए।
अदालत के फै़सले में कहा गया, ”अभियुक्त की ओर से ज़मानत याचिका के साथ पेश किए गए फोटो से पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने जो कपड़े पहने, वो यौन उत्तेजक थे।” इसी आधार पर जज ने माना है कि अभियुक्त सिविक चंद्रन उर्फ सीवी कुट्टन के ख़िलाफ़ पहली नज़र में आईपीसी की धारा 354 ए के तहत यौन उत्पीड़न का मामला नहीं बनता। अभियुक्त चंद्रन लेखक और एक्टिविस्ट हैं।
अदालत ने कहा, ”यह स्वीकार करते हुए कि उनके बीच कोई शारीरिक संपर्क नहीं हुआ, ऐसा मानना संभव नहीं है कि 74 साल की उम्र का और शारीरिक रूप से कमज़ोर कोई आदमी, शिकायतकर्ता को ज़बरदस्ती अपनी गोद में बिठा सकता है और उनकी छाती को छू सकता है।”
इस फै़सले के 10 दिन पहले भी सीवी कुट्टन को इन्हीं जज एस कृष्ण कुमार ने 42 साल की एक महिला के यौन उत्पीड़न के दूसरे आरोप में ज़मानत दे दी थी, उस केस के फै़सले में जज ने कहा था, ”यह मानना विश्वास से बिल्कुल परे है कि अभियुक्त ने यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पीड़िता दलित है, उन्हें छुआ होगा।” इस फै़सले के बारे में केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कमाल पाशा ने बीबीसी हिंदी से कहा था।
”जज ने इस फ़ैसले में, पीड़िता के खि़लाफ़ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उनका यह नज़रिया पूरी तरह से ‘पुरुष वर्चस्ववाद’ है। आदेश में वे पीड़िता के कपड़ों को दूसरों के लिए यौन उत्तेजक करार देनी वाली टिप्पणी करते हैं। वे ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकते हैं।?”
जस्टिस पाशा आगे कहते हैं, ”जज ये कैसे कह सकते हैं कि 74 साल के किसी शख़्स के लिए किसी महिला का यौन शोषण करना आसान नहीं है।? कई साल पहले मेरे सामने एक मामला आया था, जिसमें 78 साल के एक शख्स ने 88 साल की महिला से बलात्कार किया था। ऐसे मामलों का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता।”