’19 अगस्त’ ये तारीख़ अंग्रेजी हुकूमत को नेस्तनाबूद करने वाला दिन है। पूरे भारत सहित ṀḤ7 ‘बलिया’ के लिए ये गौरवशाली दिन है। 1942 में इसी दिन बागी बलिया के सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत देकर ब्रितानी हुकूमत से लोहा लेते हुए जिला कारागार का दरवाजा खोल जेल मे बन्द अपने साथी क्रांतिकारियों को आजाद कराया था।
09 अगस्त को पूरे भारत मे गांधी जी के नेतृत्व में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की शुरुआत हुई। जनाक्रोश चरम पर था। जगह- जगह थाने जलाये जा रहे थे। सरकारी दफ्तरों को बंद किया जा रहा था। रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी।
जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने भी नेताओं और क्रन्तिकारियो को जेल बंद कर रही थी, लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। पूरा देश गांधी जी के ‘करो या मरो’ के नारा के साथ अब देश से अंग्रेजी हुक़ूमत का अंत चाहती थी।
इसी क्रम में 19 अगस्त 1942 को बलिया के स्वतंत्रता सेनानियों, क्रन्तिकारियो ने आम लोगो के साथ मिलकर स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंका था, बागी बलिया के सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर ब्रिटानी हुकुमत से लोहा लेते हुए जिला कारागार का दरवाजा खोल, जेल मे बन्द अपने साथी क्रांतिकारियों को आजाद कराया और बलिया में अपनी सरकार बनाते हुए , बलिया को अंग्रेजी हुकूमत से ‘आजाद’ घोषित कर दिया।
चित्तु पांण्डेय को जिलाधिकारी की कुर्सी पर और राम दहिन ओझा को पुलिस अधीक्षक की कुर्सी पर बैठा दिया गया । चित्तू पांडेय के नेतृत्व में 14 दिनों तक स्थानीय सरकार भी चली। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने वापस अपनी सत्ता कायम कर ली।
आज के दिन को ‘बलिदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और तबसे 19 अगस्त को बलिया ज़िला कारागार को खोलने की परंपरा का शुरुआत हुआ जो आज भी कायम है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इसी विद्रोही तेवरों की वजह से बलिया को ‘बागी बलिया’ भी कहा जाता है।