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लोकसभा 2024 में BJP को रोकने के लिए अखिलेश, मायावती और प्रियंका मिलाएंगे हाथ?

देश में लोकसभा 2024 बिगुल बज चुका है। बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव से भारत में हलचल मच गयी है। “कहते है दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुज़रता है”, अब ऐसे में लोकसभा के लिए क्या समीकरण बनेंगे, आइये जानते है।

यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों पर अगर नजर डालें तो बीजेपी को 41 फीसदी से ज्यादा वोट मिला है। दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी को 32 फीसदी के आसपास वोट मिला है।

बात करे बहुजन समाज पार्टी की तो बीएसपी को 12 फीसदी वोट हासिल किए। अब बीजेपी को हराने के लिए सपा को 10 फीसदी और वोटों का गठजोड़ बैठना होगा, लेकिन यूपी में बीजेपी ने जिस तरह से गैर यादव और गैर जाटव वोटों का समीकरण तैयार किया है, उसमें सेंध लगाना इतना आसान नहीं होगा।

2017 में सपा ने यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, लेकिन गठबंधन काम नहीं आया। बीजेपी गठबंधन ने 325 सीटें जीत लीं, हालांकि इस जीत में छोटे दलों के साथ गठबंधन ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी, जिसमें ओपी राजभर की सुभासपा, निषाद पार्टी, अपना दल शामिल थे। सपा को इस चुनाव में 47 सीटें मिली थीं।

यूपी की राजनीति में लोकसभा चुनाव 2019 का इलेक्शन के अलग मोड़ था। 3 दशकों तक एक दूसरे को नापसंद करने वाले मंच साझा करने लगे अखिलेश यादव ने बीएसपी के साथ गठबंधन कर सबको अचंभित कर दिया।

विश्लेषकों का मानना भी था कि, ये गठबंधन यूपी में बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ा कर सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छा-खास दखल रखने वाली आरएलडी भी इस गठबंधन में शामिल थी, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया था।

बीजेपी गठबंधन ने अपना दल और निषाद पार्टी के साथ मिलकर 64 सीटें जीत ली थीं। इस बार ओपी राजभर ने चुनाव से पहले ही बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। अति पिछड़ा वर्ग के वोटों पर दावा करने वाले ओपी राजभर का असर भी बीजेपी लहर में नहीं दिखा। सपा को इस चुनाव में मात्र पांच और बीएसपी को 10 सीटें मिलीं। 2014 के चुनाव में बीएसपी खाता भी नहीं खोल पाई थी।

समाजवादी पार्टी ने भी इस बार वही रणनीति अपनाई जो साल 2017 में बीजेपी ने आजमाया था, यानी छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन। सपा ने इस बार ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा, आरएलडी, अपना दल (कमेरावाद) और महान दल के साथ गठबंधन किया।

बीजेपी ने भी जबरदस्त सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया था। बीजेपी ने दोबारा सत्ता में वापसी कर इतिहास रच दिया, लेकिन सपा गठबंधन ने भी 125 सीटें जीत लीं, इसमें 111 सीटें अकेले समाजवादी पार्टी के खाते में आईं। 2017 में सपा को 47 सीटें ही मिली थीं।

इस चुनाव में मिली हार का असर ये रहा कि सपा से एक-एक करके सभी दल छिटक गए। यहां तक कि शिवपाल यादव ने भी साथ छोड़ दिया, लेकिन इस चुनाव से एक सबक जरूर मिला कि यूपी में बीजेपी को रोकने के लिए सभी दल अगर एक साथ आ जाएं तो काम बन सकता है।

राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। महागठबंधन में सपा के साथ आरएलडी, अपना दल (कमेरावादी), जेडीयू और चंद्रशेखर की भीम आर्मी शामिल हो सकती है।

सपा के साथ शिवपाल और ओपी राजभर क्या फिर वापस आएंगे, ये अपने आपमें बड़ा सवाल है। दूसरी यूपी के दो प्रमुख दल बीएसपी और कांग्रेस को भी एक साथ लाना टेढ़ी खीर है। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जिस तरह दलित वोटरों को लेकर रणनीति बनाई और राजस्थान में बीएसपी के विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल किया गया, मायावती उसको भूल नहीं पाई हैं।

2019 की तरह क्या सपा और बीएसपी साथ आएंगी। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश तो शांत रहे लेकिन मायावती ने सारा दोष सपा पर ही मढ़ दिया,आखिरकार ये गठबंधन भी चुनाव में मिली हार के बाद उपजी परिस्थितियों को झेल नहीं पाया।

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बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की सबसे बड़ी आस 2019 और 2022 के चुनाव के नतीजे हो सकते हैं। 2019 के चुनाव में सपा-बीएसपी गठबंधन की वजह से ही यूपी में बीजेपी गठबंधन की सीटें 73 से घटकर 64 पर आ गई।

विधानसभा चुनाव 2022 में सपा की सीटें 47 से लेकर 111 तक पहुंच तक गईं, मतलब साफ है कि अगर यूपी में एक जातीय समीकरणों के मिलाकर एक गठबंधन खड़ा हो तो बीजेपी को मात दी जा सकती है।

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