यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल में आम चुनाव की तिथि घोषित हो जाने के बाद सभी राजनीतिक दलों की व्यस्तता बढ़ गई है। 20 नवंबर को चुनाव की तिथि तय है। चुनाव की तैयारी और प्रत्याशियों के चयन के लिए सभी राजनीतिक दल भागमभाग की स्थिति में है।राजधानी काठमांडू का हाल यह है कि यदि आप किसी बड़े नेता से मिलना चाहें तो मुश्किल है,कारण या तो वे काठमांडू के बाहर होते हैं या दिनभर प्रत्याशी चयन और गठबंधन के गुणा गणित में व्यस्त हैं। सत्ता रूढ़ नेपाली कांग्रेस अपने पांच दलों के गठबंधन को साथ लेकर चलने की कोशिश में है।
पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली एमाले को भारत के सीमावर्ती क्षेत्र तराई समेत नेपाल भर में नए साथी की तलाश है। नेपाली कांग्रेस अपने गठबंधन के साथियों के लिए 40 प्रतिशत सीटें देना चाह रही है, इसमें माओवादी केंद्र भी है जिसके कर्ताधर्ता प्रचंड हैं। सीटों के बंटवारे को लेकर मधेशी दल और नेपाली कांग्रेस में मतभेद हो सकता है,ऐसे में वे एमाले के साथ जा सकते हैं।
भारत सीमा से सटे नेपाल के तराई इलाके में मधेशी दल के कई बड़े नेता एमाले या फिर माओवादी केंद्र का दामन थाम चुके हैं। माना जा रहा है कि भारत नेपाली कांग्रेस के मौजूदा गठबंधन को हरहाल बरकरार रखना चाहेगा ताकि नेपाल में चीन के मनमाफिक सरकार को रोका जा सके।
अभी जो नेपाल का चुनावी परिदृश्य है उस अनुसार लड़ाई नेपाली कांग्रेस गठबंधन और एमाले के बीच है लेकिन एमाले नेपाली कांग्रेस गठबंधन से मुकाबले में बहुत पीछे है। मुमकिन हैं कि सरकार बनाने के लिए चुनाव बाद भी कोई नया गठबंधन अस्तित्व में आ जाय।
नेपाल की राजनीति में ऐसा हो जाना आश्चर्यजनक नहीं है। एमाले की नजर नेपाली कांग्रेस के साथ जा मिले अपने पुराने सहयोगी माधव कुमार नेपाल और बामदेव गौतम पर है ही,उसकी कोशिश पूर्व पीएम और प्रचंड के सहयोगी रहे डा.बाबू राम भट्टाराई को साथ लाने की भी है। भट्टाराई अभी अपने से विपरीत विचारधारा वाले एक मधेशी दल के साथ हैं।
इधर नेपाली कांग्रेस हिंदू राष्ट्र के मुद्दे पर चुनाव मैदान में जाने को सोच रही है। नेपाल के विभिन्न हिंदू वादी संगठनों की मांग हिंदू राष्ट्र की है। नेपाल में यद्यपि कि 90 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है लेकिन सभी के सभी धर्मभीरू हैं,ऐसा नहीं है। वे हिंदू धर्म को मानते हैं, पूजा पाठ सब करते हैं लेकिन कट्टर नहीं हैं।
पहाड़ी हिन्दुओं की बड़ी तादाद की आस्था गोरक्षपीठ के प्रति है। इस पीठ के महंत यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। नेपाल के हजारों की संख्या में पहाड़ी लोगों का गोरक्षपीठ के प्रति श्रद्धा भाव मकरसंक्रांति के पर्व पर देखा जा सकता है जब गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर में वे खिचड़ी चढ़ाने आते हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने गोरक्ष पीठ और नेपाल के बीच सनातनी संबंधों को और मजबूत किया है। योगी आदित्यनाथ नेपाल के हिंदू राष्ट्र के स्वरूप को बदल कर धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की मान्यता का विरोध करने वाले भारत के पहले हिंदू नेता हैं।उत्तराखंड से लेकर बिहार को स्पर्श कर रहे नेपाली भू-क्षेत्र की बड़ी आबादी में योगी का बहुत मान सम्मान है।
इस क्षेत्र के करीब दो दर्जन प्रतिनिधि सभा (लोकसभा) तथा इस क्षेत्र से संबद्ध प्रदेशों की 50 से अधिक विधानसभा की सीटों के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के भोजपुरी, मैथिली और पहाड़ी भाषा के गीतों की धूम रहती है। इन क्षेत्रों मे “योगी जी की सेना चली भाग चले माओ नशीली”,कैसेट की बहुत डिमांड है।
गांव और कस्बे में भारत के हिंदू युवा वाहिनी की तरह नेपाल हिंदू युवा वाहिनी का गठन हुआ है जो हिन्दू राष्ट्र की मांग को लेकर काफी सक्रिय है। हिंदू राष्ट्र की जोर पकड़ती मांग को देखते हुए ही 2017 के आम चुनाव में भी नेपाली कांग्रेस को यह कहने को मजबूर होना पड़ा था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे नेपाल के हिंदू राष्ट्र के स्वरूप को बहाल करेंगे। तब भी शेर बहादुर देउबा ही प्रधानमंत्री थे।
दुर्भाग्यवश देउबा की सरकार सत्ता में वापसी नहीं कर पाई इसलिए यह सवाल जहां का तहां रह गया। इधर चीन भी नेपाल के चुनाव को लेकर अपनी गोटी बिछा रहा है। वह चाहेगा कि नेपाल में उसके मनमाफिक सरकार बने। इसी को ध्यान में रखकर कुछ दिन पहले से चीनी कम्युनिस्ट नेताओं का एक दल काठमांडू आया था।
चीनी कम्युनिस्ट नेताओं ने प्रचंड समेत नेपाल के सभी प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात की थी।नेपाली कांग्रेस के साथ का मौजूदा गठबंधन नेपाल में चीन परस्त ताकतों को कितना शिकस्त दे पाता है,यह देखने की बात है ।
(यशोदा श्रीवास्तव स्वतंत्र लेखक हैं और यह उनके निजी विचार हैं)